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Monday, July 9, 2012

हिन्दू धर्म की एक सुन्दरता ...जातिवाद... है...!

इस धर्म के अनेक जातियों में बंटे होने के कारण ही आज भी हिन्दू धर्म जीवित है....और सनातन रूप से सदियों से ज्यों का त्यों चला आ रहा है..
इस धर्म पर कभी भी आंच आती है तो दबाव में कुछ जातियां टूट जाती हैं... 
इसके कुछ गाँव टूट जाते हैं...
कुछ लोग धर्म से बाहर हो जाते हैं
मगर पूरा का पूरा धर्म कभी भी नहीं बर्बाद होता....!!

जिस तरह एक विशाल बरगद की कुछ पत्तियां टूट जाती हैं...
कुछ टहनियां टूट जाती हैं...
फिर भी इस पेड़ की जड़ें इतनी गहरी होती हैं कि ये कभी नहीं सूखता ...ठीक वैसा ही हिन्दू धर्मं है..!

इस धर्म के अनुयायी ही बौद्ध बने, ईसाई बने , जैन बने, मियां बने, यहूदी बने ...
फिर वे सभी वापस हिंदुत्व की तरफ या तो लौट आये या धीरे धीरे लौट ही रहे हैं.

भारत में हिन्दू धर्म में अनेक जातियां हैं...सच कहिये तो हिन्दू धर्म जातियों का महासमुद्र है...
यहाँ हजारों जातियां हैं... गोत्र हैं.. उपजातियां हैं...कुल हैं. प्रवर हैं, अदि आदि ...!१

जब मियों ने इस देश में हिन्दुओं को धोखे से कुओं में ..."बधने.." का पानी डाल डाल के मियां बनाना चाहा
तब कुछ जातियां...कुंजड़े ...धुनिया... कसाई.. नाई.. धोबी... मिएँ बन गए... और तुरंत अन्य हिन्दुओं ने उनको त्याग दिया.
शादी विवाह बंद कर दिया
शेष बच गए... खून गंदे होने से

हिन्दुओं में जातिवाद ... ग्लानि नहीं गर्व की बात है...
हम सभी को अपनी अपनी जाति पर गर्व होना चाहिए...

चर्मकार को गर्व होना चाहिए अपनी शिल्प कला पर
बढई को अपनी काष्ठ कला पर...
लुहार को अपनी धातुकर्म पर
सुनार को अपनी बारीक़ कारीगरी पर..
वैश्य को अपनी पूंजी पर...दान पर
और व्यापार के सामान पर
समाज और देश के नेतृत्व करने
हेतु क्षत्रिय को अपनी चौड़ी छाती पर
और ब्राह्मण को अपने ब्रह्मज्ञान की थाती पर

हमें याद रखना होगा कि जिसे अपनी जाति का गर्व नहीं वह कभी भी धर्म पर गर्व कर ही नहीं सकता..!!

सभी जातियां पूज्य हैं..
सभी में कुछ न कुछ विशेषताएं हैं..
सभी उत्तम हैं..श्रेष्ठ हैं...!!

गलत तो तब हैं... जब हम अपने को सबसे उत्तम कहें और दूसरों को अपने से नीचे समझें



साभार : मदन मोहन तिवारी, फेसबुक 

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