Pages

Monday, April 2, 2012

राम : मुस्लिम रचनाकारों के नायक







WD
तुलसीदासजी ने कहा है कि 'रामहि केवल प्रेम पियारा'। राम को केवल प्रेम प्यारा लगता है और राम का प्रेम सब को वशीभूत कर लेता है। राम भारतीय शब्द है और हिन्दू कथा के नायक हैं। परंतु फारसी में भी राम मुहावरा बन गए हैं - राम करदन, यानी किसी को वशीभूत कर लेना, अपना बना लेना।

राम ने फारसी साहित्यकारों को 'राम करदन' यानी अपना बना लिया, परिणामस्वरूप अनेक रामायनें रची गईं। संभवत: पहली बार अकबर के जमाने में (1584-89) वाल्मीकि रामायण का फारसी में पद्यानुवाद हुआ। शाहजहाँ के समय 'रामायण फौजी' के नाम से गद्यानुवाद हुआ।

औरंगजेब के युग में चंद्रभान बेदिल ने फारसी में पद्यानुवाद किया। तर्जुमा-ए-रामायन एवं अन्य रामायनों की रचना वाल्मीकि रामायण के आधार पर की गई। मगर जहाँगीर के जमाने में मुल्ला मसीह ने 'मसीही रामायन' नामक एक मौलिक रामायण की रचना की, पाँच हजार छंदों वाली इस रामायण को सन् 1888 में मुंशी नवल किशोर प्रेस लखनऊ से प्रकाशित भी किया गया था।

उर्दू में 1864 ई. में जगन्नाथ खुश्तर की रामायन खुश्तर, मुंशी शंकरदयाल 'फर्हत' का रामायन मंजूम, बाँकेबिहारीलाल 'बहार' कृत 'रामायन-बहार' और सूरज नारायण 'मेह' का रामायन मेह प्रकाशित हुई। डॉ. कामिल बुल्के ने इन अनुवाद-रचनाओं को स्वतंत्र काव्य ग्रंथ कहा है। बाद के दौर में भी उर्दू लेखकों-शायरों ने इस परंपरा का निर्वाह किया। गोस्वामी तुलसीदास के सखा अब्दुल रहीम खान-ए-खाना ने कहा है 'रामचरित मानस हिन्दुओं के लिए ही नहीं मुसलमानों के लिए भी आदर्श है।'

'रामचरित मानस विमल, संतन जीवन प्राण,
हिन्दुअन को वेदसम जमनहिं प्रगट कुरान'

कवि संत रहीम ने अनेक राम कविताएँ भी लिखी हैं। अकबर के दरबारी इतिहासकार बदायूनी अनुदित फारसी रामायण की एक निजी हस्तलिखित प्रति रहीम के पास भी थी जिसमें चित्र उन्होंने बनवा कर शामिल किए थे। इस 50 आकर्षक चित्रों वाली रामायण के कुछ खंड 'फेअर आर्ट गैलरी वॉशिंगटन' में अब भी सुरक्षित हैं।

मुस्लिम देश इंडोनेशिया में रामकथा की सुरभि को सहज देखा जा सकता है। दरअसल राम धर्म या देश की सीमा से मुक्त एक विलक्षण ऐतिहासिक चरित्र रहे हैं। फरीद, रसखान, आलम रसलीन, हमीदुद्‍दीन नागौरी, ख्वाजा मोइनुद्‍दीन चिश्ती आदि कई रचनाकारों ने राम की काव्य-पूजा की है। कवि खुसरो ने भी तुलसीदासजी से 250 वर्ष पूर्व अपनी मुकरियों में राम को नमन किया है।

सन् 1860 में प्रकाशित रामायण के उर्दू अनुवाद की लोकप्रियता का यह आलम रहा है कि आठ साल में उसके 16 संस्करण प्रकाशित करना पड़े। वर्तमान में भी अनेक उर्दू रचनाकार राम के व्यक्तित्व की खुशबू से प्रभावित हो अपने काव्य के जरिए उसे चारों तरफ बिखेर रहे हैं। अब्दुल रशीद खाँ, नसीर बनारसी, मिर्जा हसन नासिर, दीन मोहम्मद्‍दीन इकबाल कादरी, पाकिस्तान के शायर जफर अली खाँ आदि प्रमुख रामभक्त रचनाकार हैं।

लखनऊ के मिर्जा हसन नासिर लेखक के पत्र मित्र हैं - उन्होंने श्री रामस्तुति में लिखा है -
कंज-वदनं दिव्यनयनं मेघवर्णं सुन्दरं।
दैत्य दमनं पाप-शमनं सिन्धु तरणं ईश्वरं।।
गीध मोक्षं शीलवन्तं देवरत्नं शंकरं।
कोशलेशम् शांतवेशं नासिरेशं सिय वरम्।।

By - डॉ. मनोहर भंडारी
Saabhar : WEBDUNIA

No comments:

Post a Comment

हिंदू हिंदी हिन्दुस्थान के पाठक और टिप्पणीकार के रुप में आपका स्वागत है! आपके सुझावों से हमें प्रोत्साहन मिलता है कृपया ध्यान रखें: अपनी राय देते समय किसी प्रकार के अभद्र शब्द, भाषा का प्रयॊग न करें।